Gusse Wala Seth Devotional Story in Hindi

Gusse Wala Seth - एक रामलाल नाम का सेठ था, जो स्वभाव से गुस्से वाला था।

उसका अपना एक दुकान था। दुकान में एक मुनीम का काम करता था।


Gusse Wala Seth Devotional Story in Hindi


Gusse Wala Seth Devotional Story in Hindi

जो हमेशा देर से आता था। दुकान हर सुबह आठ बजे खुल जाता था। लेकिन वो नौ बजे आता था, जिससे सेठ उसपे गुस्सा करता था।

लेकिन मुनीम मुँह से कुछ नहीं कहता, मन ही मन हमेशा यही तय करता कि तुझे जितना कहना है कहते रहो मैं कल से और देर से आऊगा।

जब देखो तब बड़-बड़ाता रहता है। कभी चैन से रहने नहीं देता।

अब मुनीम को किसी-न-किसी वजह से और देर होने लगा।

सेठ और इससे परेशान रहने लगा। सेठ इसे हटा भी नहीं सकता था, क्योकि इतनी जल्दी सारा काम कौन संभाल सकता था।

अब सेठ को इसके वजह से धंधे में नुकशान होने लगा। इस वजह से सेठ इसके ऊपर और बिगड़ता था।

इस नुकशान कि वजह से घर में भी अपने बीबी, बच्चो और नौकरो के ऊपर बिना वजह गुस्सा कर देता था।

ऐसा बहुत दिनों तक चलता रहा। सेठ के इस व्यवहार के कारण उसे ब्लड प्रेशर बढ़ गया।

उसे रातो में नींद नहीं आने लगे। सेठ को अनेक प्रकार कि बीमारियां हो गई।

अब उसे रात में सोने के लिए भी नींद का दवा खाना पड़ता।

सेठ परेशान-परेशान हो गया था। सेठ श्री कृष्ण भगवान बहुत बड़ा भक्त था।

Gusse Wala Seth Devotional Story in Hindi

वह दुकान में आते ही श्री कृष्ण भगवान को याद करता और धंधे का शुरुआत करता।

एक दिन सेठ के सपने में भगवान श्री कृष्ण आये।

भगवान श्री कृष्ण बोले - रामलाल कैसे हो?

रामलाल - प्रभु आपने दर्शन देके मुझे धन्य-धन्य कर दिया।

भगवान श्री कृष्ण - तुम आजकल बहुत दुखी रहने लगे हो।

रामलाल - क्या कहु प्रभु? आपसे कहा कुछ छुपा है।

भगवान श्री कृष्ण - तो तुम क्या चाहते हो?

रामलाल - प्रभु मैं तो यही चाहता हूँ कि ये मुनीम सुधर जाये तो मेरा धंधा अच्छा चलने लगेगा।

भगवान श्री कृष्ण - तुमने उसे समझाने का प्रयत्न किया।

रामलाल - मैं तो उसे समझा-समझा थक गया हूँ।

भगवान श्री कृष्ण - अच्छा एक बात बताओ।

रामलाल - आज्ञा प्रभु।

भगवान श्री कृष्ण - तुमसे कभी कोई गलती होती है।

रामलाल - हां।

भगवान श्री कृष्ण - अगर जैसे तुम मुनीम को समझाते हो वैसे ही तुमको समझाए तो तुमको कैसा लगेगा?

रामलाल थोड़ा सोचते हुए - दुःख लगेगा प्रभु।

भगवान श्री कृष्ण - और जब तुम दुखी होंगे तो बात जल्दी समझोगे या खुश होंगे तब जल्दी समझोगे।

रामलाल - खुशी में।

Gusse Wala Seth - गुस्से वाला सेठ

भगवान श्री कृष्ण - "तो रामलाल जरा सोचो उस मुनीम को कितना दुःख होता होगा।

तुम सेठ हो इसका मतलब ये तो नहीं कि तुम अपने निचे काम करने वाले के ऊपर गुस्सा करो।

उसे दुःख दो, वे किसी ने किसी लाचारी में तुम्हारे यहाँ काम करते है।

और अगर ये लोग न हो तो तुम्हे सेठ कौन कहेगा? इनलोगों के आधार से तुम सेठ हो।

तुम्हे उनपे गुस्सा करने का क्या अधिकार है। तुमने अपने गुस्से कि वजह से अपने आस-पास वालो को कितना दुखी किया है।

जरा सोचो अगर वे लोग न हो तो तुम्हारा क्या होगा?"

रामलाल - प्रभु मुझे तो ऐसे कभी ख्याल भी नहीं आये। अब प्रभु मुझे क्या करना चाहिए?

भगवान श्री कृष्ण - "मैंने कहा है न कि मैं हर जीव मात्र में हूँ।

अगर तुम उसे दुखी करते हो तो, वो मुझे दुखी करने के बराबर है।"

रामलाल - "हे प्रभु मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई।

मुझे माफ कीजिये, मैं धंधे में नुकशान होने के कारण सबपे गुस्सा करता रहा।"

भगवान श्री कृष्ण - "रामलाल पैसे तो जायेंगे तो वापस चले आयेंगे, लेकिन किसी के दिल के ऊपर लगे घाव शीशे में दरार पड़ने के बराबर है। धंधे में नुकशान का भरपाई हो जायेगा।

लेकिन दिल पे लगे घाव कैसे भरेंगे। तुम इसी तरह सबपे गुस्सा करते रहोगे तो एक दिन तुम सबको खो दोगे। तुमसे प्रेम करने वालो कि संख्या घटती जाएगी।"

गुस्से वाला सेठ

रामलाल रोता हुआ - प्रभु मुझे इससे निकलने का मार्ग बताइये प्रभु।

भगवान श्री कृष्ण - इससे निकलने का केवल एक ही मार्ग है।

रामलाल - वो क्या है प्रभु?

भगवान श्री कृष्ण - तुम अपने पिछले किये गुनाहों का पश्चाताप करो। और जिस-जिस को तुमने आज तक दुःख दिया है। उन सबके भीतर बैठे कृष्ण को याद करके माफी मांगो।

रामलाल - आपने जैसा कहा वैसा ही करुंगा प्रभु।

सवेरा हो चूका था, अब उसका नींद खुल गया। उसके आँखों में आँसू थे। उसे अपने किये का बहुत पश्चाताप होने लगा। बीबी, बच्चे, नौकरो और मुनीम के भीतर बैठे भगवान को याद करके उसने खूब माफी माँगा।

वो दुकान पे गया तो आज भी मुनीम देर से आया, लेकिन उसने मुँह से एक शब्द नहीं बोला।

और दिल से उसके लिए प्रार्थना करने लगा कि मुनीम के भीतर बैठे हे भगवान आज दिन तक मैंने गुस्से से जो दुःख दिया उसके लिए माफी मांगता हूँ।

इसके लिए मुझे छमा कीजिये और फिर से ऐसी गलती ना करने कि शक्ति दीजिये।

गुस्से वाला सेठ

इसी तरह उसने सबको याद करके मन ही मन माफी मांगने लगा। ऐसा करने से लोगो में तो बहुत फर्क नहीं पड़ा, लेकिन सेठ का गुस्सा कम होता गया। उसका मानसिक प्रेशर कम होने लगा।

वो नींद का गोली खाके सोता था, लेकिन अब उसे आराम से नींद आने लगा। उसका बोझापना हल्का होने लगा।

मुनीम अगर देर से आता तो सेठ उसकी जगह पे काम कर लेता।

ऐसे ही सेठ के भीतर जो दुःख रहता था वो दुःख कम होता गया। अब वह चैन से रह सकता था।

ये सब देख मुनीम को नोटिस होने लगा कि अब सेठ बदल गया है, अब देर से भी आते है तो गुस्सा नहीं करते। किसी को डाटते तक नहीं।

ऐसे ही मुनीम को ऐसा नोटिस बहुत दिनों तक होता रहा। धीरे-धीरे मुनीम को भी समझ आने लगा कि सेठ हमे पगार देते है काम के लिए और मैं बिना वजह देर से आके सेठ को दुखी करता हूँ।

मुनीम को भी मन ही मन ऐसा चलने लगा। मुनीम भी धीरे-धीरे सुधर गया और समय पे आने लगा।

वो कहा जाता है न कि इंसान देख के सीखता है। लोगो के ऊपर हमारे भाव का असर पड़ता है। हमारे अंदर जिसके लिए जैसे भाव होते है वैसे ही भाव उसको भी अपने लिए हो जाते है।



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