A short moral story on time in Hindi - समय पर एक छोटी नैतिक कहानी

A short moral story on time in Hindi is written below.

एक किसान था। उसका दो पुत्र था। एक का नाम मनोहर और दूसरे का नाम गणेश था। किसान खेतो में काम करके अपना तथा अपने परिवार का भरण-पोषण करता था। मनोहर अपने पिता का हर काम में मदद करता था और समय पे हर काम कर लेता था।


A short moral story on time in Hindi


A short moral story on time in Hindi

लेकिन गणेश को कोई काम को टालने कि आदत थी। इसके इस आदत से किसान परेशान हो गया था क्योकि इसकी वजह से बहुत नुकशान हो रहा था।

बाद में किसान को खुद ही करना पड़ता था। एक दिन किसान ने गणेश को समझाते हुए कहा - अपनी आदतों को सुधार लो नहीं तो एक दिन पछताना पड़ेगा। 

लेकिन गणेश पे उस बात का कोई फर्क नहीं पड़ा। किसान ने इसका आदत सुधारने के लिए एक तरकीब निकला। एक दिन किसान ने अपनी सारी जमीन और घर दोनों लड़को में बाट दिया और कहा - अब से दोनों अलग-अलग रहो और अपना-अपना काम खुद करके कमाओ और खाओ।

इसपर मनोहर ने कहा - पिता जी इसकी क्या जरुरत थी?

पिता - तुम चुप रहो। जाओ अपना-अपना काम करो। और कोई किसी का मदद नहीं करेगा चाहे कोई कितना ही भूखा क्यों न हो।

उस दिन के बाद, दोनों अलग रहने लगे। कुछ अनाज भी दोनों में बाँट के मिला था। इसलिए गणेश सोचा कि अभी तीन चार माह चल जायेगा,कुछ समय बाद काम करना शुरू करुगा।

समय पर एक छोटी नैतिक कहानी

इधर मनोहर अगले फसल को लगाने के लिए खेतो को तैयार करने लगा। लेकिन गणेश कल पे टाल दिया। ऐसा करते-करते मनोहर नया फसल उपजा के अनाज जमा कर लिया। उधर गणेश कल शुरू करुगा ऐसा करते-करते टालता रहा।

कुछ समय बाद, बहुत जोरो कि बारिश होने लगा जो तीन दिन तक होता रहा। इतना बारिश होने के कारण सब खेतो में पानी भर चूका था। गणेश का अनाज अब खत्म हो चूका था। अब गणेश खेतो में कुछ लगा भी नहीं सकता था।

अब गणेश को चिंता होने लगा कि मैं क्या खाऊंगा? अनाज अपने भाई से मांग भी नहीं सकता था क्योकि पिता ने मना किया था। और गांव वाले इसके इस व्यवहार के लिए कोई मदद करेगा भी नहीं।

गणेश अब भारी मुसीवत में पड़ चूका था। उसको अपने पिता का बात याद आने लगा। उसे बहुत पछतावा होने लगा कि अगर पिता जी कि बात मान लेता तो आज मुझे भूखा नहीं रहना पड़ता।

A short moral story on time in Hindi

उसे दो-तीन दिन तक भूखा रहना पड़ा। तीसरे दिन गणेश अपने पिता से मिलने आया और कहा - मुझसे बहुत गलती हो गई, जो आपका बात नहीं माना। आज दिन के बाद कभी भी कोई काम कल पे नहीं छोड़ूगा।

पिता को समझ आ गया कि इसको अपने गलती का एहसाह हो गया है। इसलिए उस दिन के बाद सब साथ में रहे ऐसा उसके पिता ने कहा। और उस दिन के बाद गणेश कभी भी शिकायत का मौका नहीं दिया।

कवीर दास कहे है

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।
पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब ॥

इसलिए हमे अपना कोई भी काम कल पे नहीं छोड़ना चाहिए नहीं तो गणेश कि तरह दुःख सहने के बाद समझ आएगा। कभी ऐसा भी हो सकता है कि हमे बहुत ज्यादा नुकशान का सामना करना पड़े इसलिए पहले ही समझ जाए।



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